दो ध्रुवों पर मित्रता के रंग 

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दो ध्रुवों पर मित्रता के रंग “हेलो सुजाता, क्या मैं अभी बात कर सकती हूँ ?”“हाँ हाँ क्यों नहीं | दिन में दो से चार बार फोन करोगी और बार-बार क्या यही पूछती रहोगी...|”“अरे यार….तुम कितनी अच्छी हो सुजाता |”“अच्छा मन ही दूसरे की अच्छाई को समझ सकता है रितु!खैर..तू बता क्या बात है ?”“मैं एक चित्र बना रही हूँ, कुछ बता न कि तू होती तो इसमें क्या करती ?”रितु ने सुजाता से पूछा ; जो कि हर दिन और हर ड्राफ्ट की बात बन गयी थी | इसलिए बिना किसी औपचारिकता के सुजाता अपनी राय उसके आगे रखने लगी