देखना फिर मिलेंगे - 2 - यादो का कारवाँ

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छुट्टन किताब लेकर सीट पर अभी बैठा ही था कि बस वाले लोग चांय चांय करने लगे, सराय आ चुका था। सबको उतरने की होड़ लगी हुई थी। साफ साफ दिख रहा था वह कोई सितारों वाला होटल नहीं बल्कि चार कमरों का यात्री धर्मशाला था और पास में ही एक मंदिर नजर आ रहा था। छोटी सी चाय की दुकान जिसने हमारी आपदा को अवसर बना कर फटाफट चूल्हा सुलगा लिया था। सारे यात्री अलग अलग कमरों में हो लिए। छुट्टन ने सोचा अब खाट पर लेट कर थोड़ा किताब पढ़ी जाए पर वही चांय चांय फिर शुरू हुई कि