एक बूँद इश्क - 18

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एक बूँद इश्क (18) मां परेश और मयंक के बीच लंबा वार्तालाप चला शुचिता जहाँ पर खामोश खड़ी है। आग तो वह लगा ही चुकी थी अब तो बस आने वाले अपने सुनहरे दिनों के बारे में सोचकर झूम रही है। कोई भी मानने को तैयार नहीं कि परेश सच बोल रहा है सभी को लग रहा है कि वो रीमा को बचाने की कोशिश कर रहा है यही समय है जो शुचिता के लिए बहुत आनंददाई है और यही तो वह चाहती है उस का सपना साकार होने जा रहा है वह खुश है। कोयले को जितना भी तोड़ो