सगुन चिरैया

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सगुन चिरैया आकाश से उतरकर अंधेरा, ऊंचे-ऊंचे दरख्तों की शाखों पर झूल रहा था। पास ही के पेड़ पर पक्षी कलरव कर रहे थे, शायद वे संध्या-गान गा रहे थे। दिन भर से अपने कमरे में कैद स्वामीजी अलसाया मन लेकर अपने आश्रम से निकले, पुरानी आदत के मुताबिक उन्होंने एक मटके में से मुठ्ठी भर अनाज निकाला और पास ही बने चबूतरे पर बैठ गए। उनकी नजर पेड़ के आस-पास उड़ रहे पखेरुओं पर पड़ी। दूर-ऊंचाईयों पर श्वेत कबूतर हवाई करतब दिखा रहे थे। स्वामी जी ने उन्हें बड़े-लाड-प्यार से पाला था। दाना जमीन पर बिखेरते हुए वे कबूतरों