ये दिल पगला कहीं का - 16 - अंतिम भाग

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ये दिल पगला कहीं का अध्याय-16 इन्ही विचारों मे मग्न निधि की आंखों से नींद गायब थी। वह करवट बदल रही थी। रात बितने का नाम ही नहीं ले रही थी। फोन की घंटी ने उसे झंझोड़ा। "हॅलो मेम! दरवाजा खोलिये। मैं बाहर खड़ी हूं।" फोन पर तमन्ना थी। "ओह! तुम हो। मुझे लगा•••।" कहते हुये निधि रूक गयी। "आपको क्या लगा! आप पुनित के फोन का इंतजार कर रही थी न!" तमन्ना ने मसखरी की। " अरे नहीं! आ गई तुम। रूको मैं अभी आती हूं।" निधि की चोरी पकड़ी गयी थी। "इतनी देर कहां लगा दी तुमने?" गेट