पिछले स्टॉप से बस छूटी तो सर पर चढ़ी धूप ठंडी हो चली थी। खिड़की से अब ठंडी हवा आने लगी थी। दिन भर की गर्मी और उमस ने दिमाग में शार्ट सर्किट किया हुआ था। छुट्टन उर्फ छज्जन लाल कभी मौसम को कोसता तो कभी अपने फैसले को जिसने नॉन ऐसी बस में सफर करने का निर्णय लिया था। पैर मुड़े मुड़े उकड़ू हो चले थे पर फैला नहीं सकते थे ना ही इतनी जगह की पालथी मार कर बैठ सकते थे। काहे की साथ में एक मोहतरमा बैठी थकी और तमीज तो उसमे कूट कूट कर भरी हुई