रात कि १२ बज छुके थे । अनुराधा को नींद आ नहीं रही थी। करवटें बदल रही थी और अपनी किसी खयालात कि दुनिया में खो गई थी । आंखो से आशु निकल कर तकिया भीग रहे थे । वो चिक तो रही थी मगर खामोशी से । लफ्जो कि दुकान अपनी दिल पर लगा कर बैठी थी । जज्बातों कि मोती से अपनी हाल सजा रही थी । मन ही मन कह रही थी कि इतने दिन हो गया आज आदि को मैसेज कर देती हूं । मगर चारो तरफ सेतो उन्होंने मुुुझे ब्लॉक कर के रखा है । कैसे