नरेश सक्सेना: पदार्थ ओर संवेदना के विरल संयोग के कवि विगत कुछ दशकों की हिन्दी कविता ने जीवन के महाद्वीपीय विस्तार की जैसी विविध यात्रा की है उससे उसकी रचनात्मक उत्सुकता व्यक्त होती है। यह यात्रा न तो आकाश मार्ग से देखी गयी धरती की विहंगमता है, न पर्यटन की तरह कुछ जगहों पर खड़े होने या वहाँ से गुजर जाने का संस्मरण। इस यात्रा के माध्यम से हम जाने अजाने भूखण्डों को देखते भी हैं और उन्हंे देखने की प्रविधि भी सीखते हैं। समकालीन कविता ने जीवन की पोथी को बाँचा ही नहीं, उस पर इतनी