मैं, मैसेज और तज़ीन - प्रदीप श्रीवास्तव भाग -3 नग़मा की इन सारी बातों को मैंने तब सच समझा था लेकिन आज जब चैटिंग की दुनिया का ककहरा ही नहीं उसकी नस-नस जान चुकी हूं तो यही समझती हूं कि उसकी सारी कहानियां झूठ का पुलिंदा थीं। बाकी भी यही करती थीं। महज अपने कस्टमर को बांधे रखने के लिए। मैं भी बंधी रही उसकी बातों में तब तक जब तक कि पहले की तरह बैलेंस खत्म होने के कारण फ़ोन कट नहीं गया। जब बैलेंस खत्म हो गया तो एक बार मैं फिर घबड़ाई की कल फिर पापा कहेंगे