"कितनी-कितनी लड़कियाँभागती हैं मन ही मनअपने रतजगे,अपनी डायरी मेंसचमुच की भागी लड़कियों सेउनकी आबादी बहुत बड़ी है।" .....आलोक धन्वा।याद आता है फ़िल्म "ओंकारा" का एक संवाद, जो एक "भगा ली गई लड़की" का पिता "भगाने वाले लड़के" से कहता है... "याद रखना! जो लड़की अपने बाप की नहीं हो सकती, वो किसी की नहीं हो सकती।"वास्तव में "एक भागी हुई लड़की" समाज के चेहरे पर एक बड़ा सवाल होती है। जिसके कई पहलू ..कई छोर होते हैं।इसमें कुछ भी एकतरफा नहीं हो सकता। ऐसे मामलों को "कौन सही और कौन गलत" के