समकालीन कहानी का यथार्थ

  • 10.5k
  • 3.2k

समकालीन कहानी का यथार्थ साहित्य के संदर्भ में अनेक अन्तों और संकट की चिन्ताजनक घोषणाओं के बाद भी आज रचना-परिमाण की विपुलता ही नहीं विशदता भी बढ़ी है। इतने अधिक के साथ इतना विविध और वह भी अपने समय से प्रासंगिक बने रहकर, सचमुच चमत्कारी आह्लाद पैदा करता है। यह प्रासंगिकता समय के अनुवादक के रूप में नहीं है बल्कि आज रचनाकार और प्रस्तुत संदर्भ में कथाकार अपने समय का मूल पाठ प्रस्तुत कर रहा है। इस मूल पाठ की खूबी यह है कि गहरे विमर्श की भूमिका को वह संवेदना की पूरी आत्मीयता के साथ प्रस्तुत