ज़िन्दगी की धूप-छाँव हरीशं कुमार ’अमित' डर शाम को घर पहुँचकर मैंने बहुत डरते-डरते खिलौने का डिब्बा मुन्नू के हाथ में पकड़ाया. उसका जन्मदिन बीते एक हफ़्ता हो गया था, पर उसका पसंदीदा खिलौना उसे जन्मदिन वाले दिन मैं दे नहीं पाया था. वजह कड़की ही थी. इस महीने के शुरू में तनख़्वाह मिलने पर उसका खिलौना खरीदने की बात सोची हुई थी, पर तनख़्वाह मिलने पर घर खर्च का हिसाब-किताब लगाने पर उस खिलौने को खरीदने की कोई गुंजाइश बहुत चाहने पर भी निकल ही नहीं पा रही थी. फिर भी एक कम कीमत वाला खिलौना मैं उसके लिए