पूर्णता की चाहत रही अधूरी लाजपत राय गर्ग दसवाँ अध्याय रविवार को गृहमंत्री का दौरा था। सूर्य पश्चिमोन्मुखी हो चुका था, किन्तु आकाश में चन्द्रमा अभी प्रकट नहीं हुआ था। अँधेरा अभी हुआ नहीं था, किन्तु उजाला ज़रूर सिमट चला था। शायद ऐसे समय को ही गोधूलि वेला कहा जाता है। हरीश घर पर ही था। बेल बजी तो उसी ने दरवाज़ा खोला। बाहर पुलिस की जिप्सी खड़ी थी। बेल बजाने वाले ने अपना परिचय दिये बिना पूछा - ‘आप ही हरीश जी हैं?’ ‘जी हाँ, मैं ही हरीश हूँ। कहिए?’ ‘आपको होम मिनिस्टर साहब ने याद किया है। आप