अधिकार

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अधिकारप्रेम में त्याग होता है स्वार्थ नहीं. जो यह कहता है कि अगर तुम मेरे नहीं हो सके तो किसी दूसरे के भी नहीं हो सकते…यहाँ प्यार नहीं स्वार्थ बोल रहा है…। सच तो यह है कि प्रेम में जहाँ अधिकार की भावना आती है वहीं इनसान स्वार्थी होने लगता है और जहाँ स्वार्थ होगा वहाँ प्रेम समाप्त हो जाएगा । उपरोक्त पंक्तियां पढ़ते-पढ़ते विनय ने आँखें मूंद लीं…एकएक शब्द सत्य है इन पंक्तियों का । क्या उसके साथ भी ऐसा ही कुछ घटित नहीं हो रहा है ? अतीत का एक-एक पल विजय की स्मृतियों में विचरने लगा… जब