राम रचि राखा - 1 - 7

  • 8.8k
  • 2.2k

राम रचि राखा अपराजिता (7) उस दिन मैं अनुराग का पोर्ट्रेट बना रही थी। तय हुआ था कि वह शनिवार और रविवार दो दिन तीन-तीन घंटे निकालेगा। उस दिन रविवार था। हमारा फ्लैट दो बेडरूम का था। एक कमरे में बेड था जिसमे मैं और पूर्वी सोते थे। दूसरे कमरे में मेरी पेंटिंग्स के सामान रखे थे। उसी में अनुराग का पोर्ट्रेट बना रही थी। वह एक कुर्सी पर बैठा था। लगभग तीन बज रहा होगा। पूर्वी खाना खाकर बेडरूम में लेटी थी। तभी डोरबेल बजा। मैंने दरवाजा खोला तो सामने गौरव, ऋषभ, विनोद, और प्रीति खड़े थे। "ओह्हो...आज तो पूरी फ़ौज