महामाया - 28

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महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – अट्ठाईस पिछले एक महिने में अखिल पत्रिका के कामकाज और आश्रम की दिनचर्या में ऐसा रमा कि उसे समय का भान ही रहा। उसने इन दिनों बहुत कुछ जाना समझा था। बहुत सी जिज्ञासाएँ अभी भी शेष थी। दीक्षा के बारे में वो दो-तीन बार वह कह चुका है लेकिन वह हर बार यह कहकर टाल जाते हैं कि सही समय आने पर दीक्षा होगी। आज बाबाजी से दीक्षा की फायनल बात करना है। सोचते-सोचते अखिल बाबाजी के कमरे में पहुंचा। बाबाजी के कमरे में अनुराधा, दोनों माताएँ, काशा, राम और स्काॅट बैठे थे। वानखेड़े