लकड़बग्घा हँस रहा है - समयगत सच्चाईयों का दस्तावेज- चन्द्रकान्त देवताले का तीसरा काव्यसंग्रह हड्डियों में छिपा ज्वर और दीवारों पर खून से के बाद चन्द्रकान्त देवताले का तीसरा काव्यसंग्रह लकड्बग्धा हँस रहा है, सार्थक रचना शीलता की दिशा में एक और सफल प्रयास है आज की कविता और प्रस्तुत प्रसंग में चन्द्रकान्त देवताले की कविता की मूल संवेदना टंकार और झंकार