केसरिया बालम डॉ. हंसा दीप 10 रुख बदलती हवाएँ नन्हीं किलकारियों में खोते हुए धानी को कुछ तो ऐसा महसूस होता जो सामान्य नहीं था, कुछ था जो पीछे छूटता नज़र आता। शायद वह बाली का प्यार था जो अब अपने बहाव की गति काफी कम कर चुका था। जितने तेज बहाव की आदी थी धानी, वह कहीं थमता-सा प्रतीत हो रहा था। धानी के खाने-पीने की लापरवाही पर डाँटना, आत्मीयता से बिठाकर खिलाना, चिढ़ाना, छेड़ना, उसकी चिंता करना, प्रशंसा करना जैसे प्रेम के कई रूपों की आदी थी वह। उनमें से एक भी जब सामने न हो तो उसका