अखिर बेचैनी का मंजर थोड़ा बदला, धीमी रफ़्तार से आती हुई ट्रेन को देखकर | इच्छा ट्रेन के रूकने से पहले ही अपने दोनो बच्चो को लेकर ट्रैक पर पहुँच जाती है | ट्रेन के रूकते ही भीड़ को सम्भालते हुए पहले बच्चो को अन्दर करती है, तत्पश्चात भीड़ मे खुद को सम्भालती हुई , स्वयं भी ट्रेन मे प्रवेश कर जाती है | भीड़ की धक्का- मुक्की उन्हे स्लीपर क्लास बोगी मे पहुँचा देती है, जहाँ सौभाग्यवश इच्छा को बच्चों सहित खड़ा देख लोअर सीट पर बैठे एक व्यक्ति ने अपने पास बैठा लिया | तत्पश्चात इच्छा को खड़े