उर्वशी ज्योत्स्ना ‘ कपिल ‘ 9 वह सम्मोहित होकर उसे आपादमस्तक देखता रहा। कपोल पर छाई एक लट, साँसों का उठता गिरता स्पंदन। शौर्य की धड़कनों का शोर बढ़ता जा रहा था। उसकी देह से उठती मदिर सुगन्ध शौर्य के होश उड़ा रही थी। नशा बढ़ता ही जा रहा था। उसने उसके गालों पर अ