गवाक्ष 5== सत्यव्रत ने आँखें मूंदकर एक लंबी साँस ली। वे समझ नहीं पा रहे थे इस अन्य लोक के प्राणी से वे क्या और कैसे अपने बारे में बात करें? " हर वह धातु सोना नहीं होती जो चमकती हुई दिखाई देती है । " उन्होंने मुरझाए शब्दों में कहा । "अर्थात ---??" उसकी बुद्धि में कुछ नहीं आया अत: उसने उनसे पूछा; "वैसे आप इतने व्यथित क्यों हैं? क्या इसलिए कि मैं आपको ले जाने आया हूँ ? " "नहीं दूत, मैं इस तथ्य से परिचित हूँ कि समय पूर्ण होने पर सबको वापिस अपने वास्तविक निवास पर लौटना होता है । " "क्या मैं अपेक्षा करूँ आप मुझे