फ़लक तक चल... साथ मेरे ! - 2

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फ़लक तक चल... साथ मेरे ! 2. इस बार कड़ाके की ठंड है ! इतनी ठंड कि नानी के प्रत्यक्ष रूप से दिखते सुघड़ शरीर के विपरीत उनकी कोमल हड्डियां इस ठंड को बर्दाश्त नहीं कर पाएंगी, ऐसा पहले ही लग गया था। कल रात सोई तो सुबह उठी ही नहीं। रात में कब उन्होंने प्राण त्याग दिए, कोई नहीं जानता, न जानना ही चाहता है। केवल वनिता के शरीर में सिहरन-सी दौड़ जाती है यह सोचकर कि रात भर वह एक मृत देह के साथ बगल की चारपाई पर सो रही थी। भूत-प्रेत के कितने किस्से उसने गांव में