कहानी कुत्ते की पूँछ राजेन्द्र कुमार श्रीवास्तव, ''मैंने क्या किया ?'' सदा की तरह यह आश्चर्य मिश्रित प्रश्न दागकर इतराते हुये, शरीर को गठीली रस्सी की भाँति ऐंठते दूसरे रूम में बुदबुदाते चली गई वह। मैं विचारों के दलदल में सिर धुनता हुआ छटपटाता रह गया । अपनी औलाद की जि़न्दगी के महत्वपूर्ण फैसले में सहायता के वजाय अड़ंगा डालकर उसे तनिक भी अफसोस नहीं। मैं उस क्षण को कोस रहा हूँ, जब ऊपरवाले ने किसी प्रायश्चितके तहत हमारी जोडी़ मिलाई! लगभग पैंतीस