एक अप्रेषित-पत्र महेन्द्र भीष्म सतसीरी शहर में कर्फ्यू को लगे आज तीसरी रात है। अस्सी बरस की बूढ़ी दीना ताई की आँखों से नींद कोसों दूर है। जाग घर, मुहल्ला अौर शहर के अन्य बाशिंदे भी रहे थे। भय, घबड़ाहट से आक्रांत हो सुबह होने का बेमतलब—सा इंतजार, जैसे सूरज के उगने से, चिड़ियों के चहचहाने से शहर—भर में फैला दंगा—फसाद, मार—काट सब बंद हो जायेगा। आशा ही जीवन है, जीने की जिजीविषा सभी में होती है। दीना ताई की तरह बूढ़ी हो चली सतसीरी गाय रँभा उठी। कान से बहरी दीना ताई के अलावा परिवार और बिल्डिंग में रहने