महामाया - 24

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महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – चौबीस अखिल ने भी सीट पर सिर टिकाया,आँखें बंद की और सोचने लगा। पिछले दस दिनों में जो भी बाबाजी के सानिध्य में आया है उनमें से ज्यादातर लोगों की जिज्ञासाएँ शांत हुई है। कुछ की जिज्ञासाएँ और गहरा गई है। कुछ दीक्षा को अपने जीवन का दुर्लभ क्षण मानकर आनंदित है.....कुछ भाव विभोर.....कुछ पर गुरुभक्ति का अच्छा खासा जुनून सवार हो चुका है......कुछ समाधि के दर्शन को ही पुण्यलाभ मानकर उल्लासित हैं......साथ ही सब के सब श्रद्धा से नतमस्तक है। बाबाजी से जुड़ने के बाद लोगों के अपने-अपने अनुभव है। लोग अनुभव आपस में