फ़लक तक चल... साथ मेरे ! - 1

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फ़लक तक चल... साथ मेरे ! 1 ------ पर्दों के बीच की झिरी से सूरज की किरणें वनिता के चेहरे पर ऐसे पड़ रही थी जैसे किसी मंच पर प्रमुख किरदार के चेहरे पर स्पॉटलाइट डालकर उसके चेहरे के भावों को उभारा जाए । रूखे बिखरे काले बालों में से कुछ जगह बना झांकते हुये उज्जवल चेहरे पर मुंदी हुई दो बड़ी-बड़ी पलकें बीच-बीच में कुछ हिलती- सी प्रतीत होती और उन गुलाबी अधरों पर एक स्मित तैर जाती।“वनिता...वनिता... उठ आठ बज गए। कोई बताये भला इस लड़की का क्या होगा?”, यह नानी का स्वर था। “अब उठ, सौ बार