हां..मैं नारी ही तो थी..!! मैं वही असहाय सुनैना ही तो हूँ जो राम को ये ना कह सकीं कि हे राम! तुमने मेरी पुत्री को वन क्यों भेजा,उसका क्या दोष था,उसने तो कभी अपने पतिकर्तव्य से कभी मुख नहीं मोड़ा,हाय मेरी सीता महलों मे पली,तुम्हारे साथ वन वन भटकी,उसने कभी भी तुम्हारा विरोध नहीं किया, सदैव अपने पत्नी धर्म का पालन किया,तुमने उससे अग्नि परीक्षा लेकर उसके सतीत्व का प्रमाण मांगा,ये सब करके भी तुम्हारा जी ना भरा और तुमने उसे बिना बताएं, गर्भावस्था मे वन भेज दिया,तुम कबसे इतने पाषाण हृदय हो गए राम! मैं तुमसे ये