एक अप्रेषित-पत्र - 7

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एक अप्रेषित-पत्र महेन्द्र भीष्म वितृष्णा अनार का जूस लेकर जब मैं वापस वार्ड में पहुँची, तो देखा बाबूजी अपनी आँखे बन्द किये झपक चुके थे। उनकी नींद में व्यवधान न हो यह सोचकर मैंने धीरे से जूस वाली थैली टिफिन बॉक्स के अन्दर रख दी और बेड के समीप रखे ऊँचे टीन के स्टूल पर बैठ कर बाबूजी के स्वतः जागने की प्रतीक्षा करने लगी। अभी मुश्किल से दस—बारह मिनट ही बीते होंगे कि वार्ड में ही बाबूजी के बेड से कोई आठ—दस पलंग आगे की ओर एक महिला का कर्कश स्वर गूँजा। मेरी तरह लगभग सभी का ध्यान उस