प्रिय वन्दूआज ज़िन्दगी के सफर में चलते चलते उस पड़ाव पर पहुँच चुकी हूँ, जहाँ से अतीत और भविष्य एक साथ नज़र आता है। ज़िन्दगी के गलियारे में झाँकते हुए खुद को खुद की नज़र से देखा... और सोचा कि खुद से क्या चाहा, क्या पाया और क्या शेष रहा, इसका आकलन करना हो तो इस सुंदर सफर में खुद की ज़िंदगी की कहानी में खुद को पात्र के रूप में देखना जरूरी है। तो चलिए... शुरू से शुरू करते हैं...वन्दू तुमने एक संयुक्त परिवार में होश सम्भालते ही ज़िन्दगी के अनेक रंग देखे। संघर्ष का अर्थ न समझते हुए