तुम ना जाने किस जहां में खो गए..... - 10 - कॉलेज लाइब्रेरी

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खुशनुमा सुबह थी वह कई दिनों के बाद। मन शांत था मेरा। दस बजने को थे और मैं तैयार थी निकलने के लिए - नीले कुर्ते - सलवार में । खुद को देखा मैंने आइने में। अच्छी लग रही थी मैं। सोचा कि बूथ से ही फोन करूंगी आज जो घर के पास वाले मार्केट में था। ११बजने में १० मिनट थे। निकली मैं घर से और बूथ पर जाकर कॉल लगाया। फोन तुम्हीं ने उठाया था। " मैं बोल रही हूं। "" पता है। "" तो क्या जवाब है तुम्हारा?"" हां।""क्या मतलब?"" यही जवाब देना था ना मुझे।"शायद अंदर से