दह--शत [ नीलम कुलश्रेष्ठ ] एपीसोड -7 विकेश अपने उसी ढीठ अंदाज़ में उसके दरवाज़े आ खड़ा हुआ था, “भाभीजी मैं ऑफ़िस से सीधा चला आ रहा हूँ । भाई साहब के प्रमोशन की खबर मैं सबसे पहले आपको देना चाहता था।” “बैठिए ।” वह अपने रोष को नियंत्रित नहीं कर पा रही थी । “आप को बहुत-बहुत बधाई !” “धन्यवाद ।” उसने पानी का गिलास उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा था । “वैसे भाई साहब का प्रमोशन हो ही गया चाहे दो वर्ष बाद ही क्यों नहीं हुआ ।” “पैसे के हिसाब से हमें कोई फ़र्क नहीं पड़ा ।