महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – बाईस संत निवास में गद्दे पर लंबे पैर कर दीवार से सिर टिकाये निर्मला माई बैठी थी। नीचे कालीन पर आलथी-पालथी लगाये जग्गा बैठा था। उसने दोनों हाथों से निर्मला माई के दोनों पंजों को पकड़ रखा था। उन दोनों के बीच बातचीत चल रही थी। ‘‘तुम मुझे अपनी सेवा में लगा लो’’ ‘‘कौन, कब किसकी सेवा में रहेगा यह बाबाजी तय करते हैं’’ निर्मला माई ने जवाब दिया। ‘‘तो तुम बाबाजी से क्यों नहीं कहती?’’ ‘‘हमारे कहने से क्या होगा। निर्णय तो बाबाजी को करना है’’ ‘‘और बाबाजी तुम्हारी बात टाल नहीं सकते’’ ‘‘यही