केसरिया बालम डॉ. हंसा दीप 4 इन्द्रधनुषी रंग सगाई के बाद से शादी तक के वे दिन इतने चुलबुले, इतने बेताब करने वाले थे कि लगता युगों-युगों से जानती है वह बाली को। जाने कितना इंतज़ार और करना होगा। कभी तो समय काटे नहीं कटता, कभी ख्यालों में यूँ खोयी रहती कि कब दिन ढला, कब रात हुई, पता ही न चलता। धानी को लगता, मन तो वैसा ही है, आकाश में बहता हुआ। उसकी देह से निकल गया है शायद। शायद बाली का मन भी ऐसे ही निकल कर आ गया हो उसके पास। एक बात निश्चित लगी उसे,