उर्वशी ज्योत्स्ना ‘ कपिल ‘ 3 " यहाँ ? हमारे घर मे ?" आश्चर्य से वह उछल ही पड़ी थी। इससे पहले की पापा कोई उत्तर दें, वह लगभग दौड़ती सी बैठक में आ गई। शिखर पर दृष्टि पड़ी तो अवाक रह गई … कुछ पल को वह अपनी चेतना जैसे खो बैठी थी। आँखें फाड़े बस देखती रही। शिखर ने सुर्ख गुलाब का सुंदर सा गुलदस्ता उसकी ओर बढ़ा दिया। उन्होंने उससे क्या कहा, उर्वशी के कानों तक आवाज़ ही नहीं गई। " क्या हुआ ? हैलो " उसने चुटकी बजाई तब वह चैतन्य हुई। उसकी यह स्थिति अपने समक्ष