कान्ता बार बार दरवाजे तक आती और घूंघट से झांक कर देखती पर दूर दूर भी कही सत्तू नहीं दिखाई दे रहा था। ये इंतजार की घड़ियां बढ़ती ही जा रही थी। शाम हो गई । सुबह से राह देखते देखते शाम हो गई पर आनंद नहीं आया। सुबह का बना खाना वैसे का वैसा ही रखा रह गया। अब क्या करूं? कांता की घबराहट बढ़ती ही जा रही थी । जिसका इंतजार था वो तो ना आया पर सासू मां आ गई आते ही सवाल किया, क्यो दुलहिन… ? चूल्हा क्यों नहीं जलाया? घबराई सी कान्ता पास आकर बुदबदाई माई देवर जी नहीं आए हैं । क्या कहा...? नही आया ? ये क्या हुआ...? खेत में था तो बोला की माई भूख लगी है। खाना खाने घर जा रहा हूं, तो आया नही क्या……?