श्वेता ने आश्वस्त होकर अपनी जिन्दगी का फैसला राजीव के हाथों में सौंप तो दिया लेकिन फिर उस बात को लेकर घर में चर्चा होना बंद हो गई । श्वेता को महसूस होने लगा कि उसकी जिन्दगी के एक अहम पहलू को जानबूझकर भुला दिया जा रहा है । राजीव एक ही घर में रहते हुए भी अपना समय इस तरह से एडजस्ट करने लगा कि अधिक से अधिक वक्त वह श्वेता से दूर रह सके । वैसे भी श्वेता की नौकरी का समय सेकेण्ड शिफ्ट का था तो राजीव से उसकी मुलाकात रविवार को ही हो पाती थी ।