ज़रा धीरे हाथ चला बेटा.. चोट लग जाएगी, तुझे कहाँ की ट्रेन पकड़नी है, देखो हर बात में यूँ जल्दबाजी ठीक नहीं, बहुत वक़्त है अभी लंच में" माँओं के पास अक्सर सवाल होते हैं, और जवाब भी उन्हीं कि साड़ी के पल्लू से बंधे होते हैं, जिन्हें वो कसकर गाँठ लगाया करती हैं कि उनकी बिना चाह कोई उनके जवाब चोरी ना कर पाए।मैंने कई दफ़ा कोशिश की ,माँ की साड़ी की गाँठ को खोल सारे जवाब कहीं लिख लूँ लेकिन माँ उस खजाने को कहीं छिपा दिया करती। शायद वो मेरे इरादों को भाँप जाती थी, उनकी मुस्कान मुझे