प्रेम - दर्द की खाई (भाग-2)

  • 4.9k
  • 1.9k

दसवीं की सहेलीपापा मुझे पढ़ाने के लिए बहुत परेशानी से गुजर रहे है। मेरी कोशिश सिर्फ यही है कि मैं अपने पापा की मेहनत को व्यर्थ न जाने दूँ। आज मेरी जिंदगी ने मुझे कुछ ऐसा प्रदान किया है। जो मुझे पूरा करता है। मेरी बहुत सी सहेलियां बनी मगर उनके साथ मेरी मित्रता कुछ समय तक ही रही। पता नहीं ऐसा क्यों होता था। मेरी जो भी मित्र बनते वो कुछ समय के लिए मुझमें रुचि लेते और फिर उनकी रुचि कम होने लगती। मैं बहुत अकेली महसूस करती थी। मेरे साथ ऐसा कई बार हुआ जब भी