उस दिन का पेपर, छोटू ने कैसे दिया, वही जानता है। आंसरशीट पर पर थोड़ी थोड़ी देर में उसे कभी चोटी लहराती, दौड़ती आकृति दिखती तो कभी खिड़की से झाँकतीं दो आंखें...! तीन घण्टे से पहले हॉल से निकल नहीं सकते थे सो मजबूरन छोटू को अंदर ही रुकना पड़ा, वरना पेपर तो दो घण्टे में ही कम्प्लीट हो गया था उसका। एक बजे छोटू जब बाहर निकला, तो किशोर गरम समोसे लिए गाड़ी के पास खड़ा था। दोनों ने एक एक समोसा खाया, चाय पी और वापस हो लिए। एक घण्टे बाद ही वे ठाठीपुरा के मोड़ पर थे।