न उम्र की सीमा हो .................... ये वक्त जो ठहर हुआ है मुठ्ठी में फँसी रेत सा फिसलता जा रहा ..लाख जतन रोकने की पर वह है कि बहता जा रहा ...तुम्हारी याद के मुहाने पर आकर ठहर गई हूँ जब भी देखती हूँ पलट कर तो तुम जाते हुये दिखायी देते हो ,जैसे प्लेटफ़ॉर्म से छूटी रेलगाड़ी ,जिसे पकड़ कर रोकना बेहद मुश्किल । रेल की खिड़की से झाँकते हाथ हिलाते लोग चले जाने की घोषणा से करते मालूम होते हैं ....देखो न ! जाते हुये बॉय भी नहीं कहा तुमने ....एक डर था तुम्हारी आँखों में हमेशा से