बहुत खुश थी मैं उस रात, अगली सुबह की प्रतीक्षा करती हुई - पूरी उम्मीद के साथ कि जवाब आएगा ही और वो भी सकारात्मक। जैसे - तैसे रात बीती। सुबह मम्मी - पापा के ऑफिस जाने के बाद मैं भी निकल गई संयोगिता के घर। पहुंचते ही मैं उद्दिग्न थी सब बताने को।"पता है कल मैंने उसे पत्र लिखा है।" "अच्छा""ये तो पूछो - क्या लिखा?""हां, बताओ क्या लिखा? तुमने तो अच्छा ही लिखा होगा।" और फिर मैं शुरू हो गई अपने १०पृष्ठ के पत्र का पूरा विश्लेषण देने। ऐसे लिखा मैंने, ये लिखा मैंने। बहुत शांति और धैर्य के साथ पूरे