घर में सबकी लाडली मैं। जब जो चाहा , मिला। ननिहाल के भरे - पूरे छह नाना - नानी वाले परिवार के इस पीढ़ी की प्रथम संतान - सबका भरपूर प्यार मिला था मुझे। कभी सोचा ही नहीं कि मुझे भी कभी कोई ना कह सकता है। लग रहा था अचानक रिक्त सी हो गई मैं। तीन - चार दिन वही दीवानगी की हालत रही। सब मित्र आकर मिल रहे थे मुझसे। सौरभ को बुलाया मैंने। आया वह।" मन को संभालो। मैंने उससे बात की थी। सही में वो नहीं जानता तुमको। अच्छा लड़का है। गलत नहीं बोलेगा।"ये सारे साल कौंध