कुबेर - 48 - अंतिम भाग

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कुबेर डॉ. हंसा दीप 48 बच्चे क्या कहते, जानते थे उनका लक्ष्य, उनका काम। अपने नये मिशन को पूरा करने वे वहीं रहने लगे। यद्यपि इन बच्चों के लिए की गयीं ये व्यवस्थाएँ पर्याप्त नहीं थीं वे उनके जीवन को इतना आसान बनाना चाहते थे कि किसी भी स्पेशल चाइल्ड को किसी पर निर्भर न रहना पड़े। ऐसा क्या करें कि इन बच्चों की तकलीफ़ें कम हों। अपने इन्हीं विचारों में खोए हुए थे कि पास्कल साहब ने कहा – “सर, धीरम के प्रेज़ेंटेशन का समय हो रहा है हमें चलना होगा।” वे फिर भी अपने विचारों में खोए थे।