गंगा घाट की सीढ़ियों पर बैठी नयनतारा जीवन के विगत पलोंको आँखों में भर बहती गंगा की धारा को शून्य सी होकर निहार रही थी । सीढ़ियों पर उतरते चढ़ते लोगों के मन में उमड़ते गंगा मैया के लिए आस्था के भाव उसे आल्हाद किए जाते थे । इन्हीं श्रद्धालुओं के दान पुण्य से ही तो उसका जीवन यापन चलता है । यदि गंगा मैया का आसरा न मिलता तो कहाँ जाती वह । इसके किनारे बैठ जीवन के बीस वर्ष कब गुजर गए मालूम न चला । श्वेत सूती साड़ी के पल्लू को केश विहीन मस्तक पर भलीभांति ओढ़ वह