महामाया - 16

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महामाया सुनील चतुर्वेदी अध्याय – सोलह माई की बगीची के एक कमरे में वैद्यजी ने अपना डेरा जमा रखा था। उनकी उम्र चालीस-पैंतालीस के बीच थी। धोती-कुर्ते का पहनावा, आँखों में सूरमा, रंग थोड़ा दबा हुआ। चेहरे पर चेचक के निशान। वैद्यजी बांया पैर लंबा कर दांया पैर मोड़कर बांयी सीवन पर टिकाये अर्द्धपालथी आसन में बैठे थे। उन्होंने सामने बैठे मरीज के दांये हाथ की नाड़ी अपनी तीन ऊंगलियों से थामी और मरीज का हाल कहने लगे। ‘‘जोड़ों में दर्द रहता है...... कभी-कभी कलेजे में डट्ठा सा लग जाता है....... सांस लेने में तकलीफ होती है... दिन भर शरीर