बेटे के बोर्ड के पेपर चल रहे थे...महीनों से घर से बाहर भी नहीं निकली थी ।सोचा था..इस बार इम्तिहान खत्म होने के बाद ही पीहर चली जायेगी...पर ये नाशपीटी बीमारी कोरोना के चक्कर में सारा कार्यक्रम रद्द करना पड़ा।कितना छटपटाई थी वो और वहाँ दूर बैठे माँ-पापा।उनकी आवाज में उस दर्द को उसने भी महसूस किया था। एक साल ....हाँ एक साल हो गए थे उसे पीहर गए हुए।मन न जाने किन यादों में खोता चला गया।दस दिन...हाँ दस दिन पहले की ही तो बात है।सोचते-सोचते सुगन्धा का मन मयूर पंख लगाए न जाने किस दुनिया