एहसासों के साये में

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-कहानी एहसासों के साये में -राजेन्द्र कुमार श्रीवास्‍तव, ‘’हैल्‍लो!....कौन?.....कौन बोल......किससे बात करनी है? ‘’मैं.....मैं बोल रही हूँ....’’ मुझे धुंधला सा कुछ एहसास हो रहा है। स्‍मृति में उभरती हुई क्षीण सी ध्‍वनि मुग्‍ध कर रही है। मेहसूस हो रहा है कि चिर परिचित हैं। जो शरीर में भावावेश का रंगीन प्रकाशपुंज उत्‍पन्‍न कर रही हैं। मैं यह रहस्‍यमयी अनुभूति को समझने की कोशिश करता हॅूं । ‘’...मैं.....मैं कौन?’’ जिज्ञासा बढ़ने लगी। ‘’कोई नाम तो होगा, आपका?’’ ‘’हॉं है ना.....! आपका दिया हुआ। ‘’मरिचिका।‘’ ......पलक झपकते ही सारे चित्र स्‍पष्‍ट