मेरी नजर में प्रकाशक

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मेरे सरोकार(एक अन्यर्यात्रा) एक अंश---प्रकाशकों से रिश्ते प्रेमचंद युग में लेखक प्रकाशक के रिश्ते अवश्य ही आज से जुदा रहे होंगे। तब शायद आज जैसी स्थितियां न हों और ये भी संभव है कि आज से जुदा रही हों या फिर बदतर रही हों, लेकिन इतना अवश्य है कि आज फ्रीलांसर अपना और परिवार का गुजारा नहीं कर सकते, अपवाद स्वरूप कोई है तो उसकी चर्चा ही निरर्थक है। ये सत्य है कि लेखक को लोक से जुड़ना होता है, लोगो के बीच जाना होता है, जिसका अभी के लेखकों में रुझान दिखाई नहीं पड़ता। लेकिन एक सत्य ये