भदूकड़ा - 45

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"हे मोरी शारदा मैया, जानकी खों ठीक कर दियो" अपने आप ही कुंती के मुंह से ये दुआ निकली और हाथ स्वतः ही जुड़ गए प्रार्थना में। ये प्रार्थना जानकी के स्वास्थ्य के लिए थी, या अपनी गर्दन की चिंता.... भगवान जाने...! कुंती को याद तो सुमित्रा के साथ की गईं ज़्यादतियां भी आ रही थीं.....बहुत दुख दिए हैं उसने सुमित्रा को। लेकिन तब भी उसे उआँ पर कोई पछतावा नहीं है। अपनी करनी के आगे, उसे अपने जेठ से ब्याह करवाने का अपराध ज़्यादा बड़ा लगता है। कुंती ये कभी मान ही नकहिं पाई कि सुमित्रा जी ने ये