माँ... तुम बिन बिन इह लोक, जगत मर्माहत सूने अंचल और इन्द्रधनुष प्रेम,त्याग,क्षमा,दया की धाराधैर्य,कुशलता,धर्मपरायण जीवन रहा तुम्हारा, इठलाती, बलखाती गुण तेरे ही गाती माँन पड़ता कम गुणगान तुम्हारा तूलिका घिसती जाती माँ, तुम सरस्वती ज्ञान स्वरों से नहलाओ जितने भी घट पीना चाहूँ उतने आज पिलाओ...